क्यों नवरात्रि के दसवें दिन मनाया जाता है दशहरा, …जानिए

व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरा का दूसरा नाम विजयादशमी भी है।

जब अहंकारी रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था तो भगवान राम सीता को वापस लाने के लिए निकले। मार्ग में नारद मुनि के निर्देशानुसार उन्होंने नवरात्र व्रत कर नौ दिन भगवती दुर्गा की अर्चना की। मां की प्रसन्न्ता और उनसे वर पाकर ही श्री राम ने लंका पर चढ़ाई की। आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। तब से इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा। नवरात्र के नौ दिन हमारी सुसुप्त शक्तियों को जगाने के दिन होते हैं और तब दसवें दिन हम विजय पाने के योग्य हो जाते हैं।

महाभारत में वर्णन है कि दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर बारह वर्ष का वनवास दिया था एवं तेरहवां वर्ष अज्ञातकाल का था। इस वर्ष में यदि कौरव पांडवों को खोज निकालते तो पुन: बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास का सामना करना पड़ता। इस अज्ञात काल में पांडवों ने राजा विराट के यहां नौकरी की थी। अर्जुन इस काल में वृहन्नाला के वेष में रह रहा था। जब गौ रक्षा के लिए धृष्टद्युम्न ने कौरव सेना पर आक्रमण करने की योजना बनाई तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र उतारकर कौरव सेना पर विजय इसी दिन प्राप्त की थी। इस कारण भी विजयादशमी का पर्व प्रचलित हो गया। इस प्रकार से देखा जाए तो विजयादशमी का पर्व मुख्यत: विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है।

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प्रतीक अर्थ में यह उत्सव बुराई के अंत स्वरूप मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है तो अन्याय पर न्याय की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत, दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की जीत का पर्व है। यह पर्व हमें सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सत्य चाहे कितना भी कड़वा हो, हमेशा उसी का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि यह सनातन सत्य है कि हमेशा शुभ कर्मों की ही जीत होती है। इसे विजय पर्व भी कहा जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में इसे अबूझ मुहूर्त की संज्ञा दी गई है। इस दिन किया गया कोई भी कार्य अवश्य सफल रहता है। किसी भी प्रकार के शुभ कर्म के लिए इस पर्व का अवश्य उपयोग करना चाहिए। ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है। आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है इसलिए इसे विजयादशमी कहा जाता है।

शक्ति की पूजा का पर्व
दशहरा अथवा विजयादशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

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इसीलिए कहा गया है – “आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर”
आम जीवन में भी हम ऐसे लोग देखते हैं.जरा सा पद, जरा-सा पैसा, जरा-सा अधिकार प्राप्त करने पर भी कभी-कभी इंसान को घमंड आ जाता है.पर यह आपकी गलत सोच है व्यक्ति को सदा सद भाव के साथ सहजता से जीवन व्यतीत करना चाहिए बुराई को त्याग अच्छाई को ग्रहण करें.यह भी एक विजयादशमी का संदेश है।

संपत्ति का उत्सव है दशहरा
दशहरे या विजयादशमी का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत में ज्यादातर ग्रामीण कृषि पर ही निर्भर रहते हैं। दशहरा वह समय होता है जब खरीफ की फसल पककर तैयार हो जाती है। किसान इस समय अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो वह उसका उत्सव मनाता है। फसल के रूप में जो भी संपत्ति उसे प्राप्त हुई है उसके लिए वह ईश्वर का आभार व्यक्त करता है। उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है।