मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो पूरे देश में अलग-अलग संस्कृति में मनाया जाता है। देशभर में ऐसे कई प्रदेश हैं, जहां मकर संक्रांति को न सिर्फ विभिन्न नामों से जाना जाता है बल्कि कई धार्मिक आस्था भी भिन्न है। पर्व मकर राशि में सूर्य की संक्रान्ति को ही मकर संक्रांति कहते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाता है और नए साल पर अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाती है।
यह पर्व सूर्य के राशि परिवर्तन करने के साथ ही सेहत और जीवनशैली से इसका गहरा नाता है। इन सबके साथ ही यह लोगों की धार्मिक आस्था का भी पर्व है। वहीं यह पर्व किसानों की मेहनत से भी जुड़ा है, क्योंकि इसी दिन से फसल कटाई का समय हो जाता है। वैसे तो इस दिन कई ऐसी चीजें हैं जो खाई जाती हैं, जैसे मूंगफली, दही चुड़ा, गुड़, तिल के लड्डू और खिचड़ी। लेकिन तिल और गुड़ का खास महत्व होता है। आइए हम आपको आज इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी के सेवन के महत्व के बारे में बताते हैं। मकर संक्रांति पर लोग तिल और गुड़ से बनी चीजों का दान करते हैं और इससे बनी चीजें जरूर खाते हैं। नए चावल से बनी खिचड़ी भी बहुत शुभ होती है। दरअसल, इसके पीछे एक धार्मिक और एक वैज्ञानिक कारण है।
तिल-गुड़ का क्या है महत्व
इस त्योहार पर घर में तिल्ली और गुड़ के लड्डू बनाए जाने की परंपरा है। इसके अलावा भी सफेद और काली तिल्ली के लड्डू बनते हैं। खोई, चिड़वा और आटे के लड्डू भी बनते हैं। दरअसल, ऐसी मान्यता है कि इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, तो कड़वी बातों को भुलाकर नई शुरुआत की जाती है। इसलिए गुड़ से बनी चिक्की, लड्डू और, तिल की बर्फी खाई जाती है।
सर्दियों में गुड़ से होता है शरीर गर्म
तिल और गुड़ खाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल, सर्दियों में शरीर का तापमान गिर जाता है। ऐसे में हमें बाहरी तापमान से अंदरुनी तापमान को बैलेंस करना होता है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं, ये खाने से शरीर गर्म रहता है। इसलिए इस त्योहार में ये चीजें खाई और बनाई जाती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक तिल खाने से शरीर गर्म रहता है और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी मिलती है।
खिचड़ी का महत्व
इस दिन खिचड़ी दान और खाने के पीछे एक कहानी है। इसके पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट होता था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रख दिया।
मकर संक्रांति ही नाम क्यों?
12 राशियों में से मकर एक राशि है। सूर्य की एक राशि से दूसरी राशि में जाने की प्रक्रिया को संक्रांति कहते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
इस दिन क्यों उड़ाते हैं रंगबिरंगी पतंग
यह पर्व सेहत के लिहाज से बड़ा ही फायदेमंद है। सुबह-सुबह पतंग उड़ाने के बहाने लोग जल्द उठ जाते हैं वहीं धूप शरीर को लगने से विटामिन डी मिल जाता है। इसे त्वचा के लिए भी अच्छा माना गया है। सर्द हवाओं से होने वाली कई समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
बराबर हो जाते हैं दिन-रात
वैज्ञानिक पहलुओं से देखें तो ठंड के मौसम जाने का सूचक है और मकर संक्रांति पर दिन-रात बराबर अवधि के होते हैं। इसके बाद से दिन बडे हो जाते हैं और मौसम में गर्माहट आने लगती है। फसल कटाई अथवा बसंत के मौसम का आगमन भी इसी दिन से मान लिया जाता है।
14 व 15 जनवरी में क्यों है असमंजस
मकर संक्रांति को लेकर 14 और 15 जनवरी के बीच यह भ्रम की स्थिति 2015 से शुरु हुई है और यह करीब साल 2030 तक बनी रहेगी। आइए आपको बताते हैं कि मकर संक्रांति की तारीख बदलने और आगे बढ़ने के पीछे क्या कारण है और उनके पीछे का वैज्ञानिक आधार क्या है।
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि सूरज के उत्तरायण काल में आने के बाद से ही शुभ काम करने का समय शुरु होता है। मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य की गति के आधार पर मनाया जाता है। इस दिन सूर्य की गति बदलती है और वह मकर राशि में प्रवेश के साथ दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है। मकर संक्राति की तारीख बदलने और आगे बढ़ने में लीप ईयर (अधिवर्ष) की अहम भूमिका है।
हर वर्ष सूर्य के मकर राशि में आने का समय थोड़ा-थोड़ा करके बढ़ता चला जाता है। इस तरह 2030 के बाद से मकर संक्रांति तीन साल 15 जनवरी और एक साल 14 जनवरी को मनाई जाएगी और इसके बाद कुछ सालों के लिए इसकी स्थाई तारीख 15 जनवरी हो जाएगी। साल गुजरने के साथ मकर संक्रांति का त्योहार 16 जनवरी की ओर बढ़ेगा।
आपको बता दें कि करीब 1700 सालों से भी पहले के समय में मकर संक्रांति दिसंबर महीने में मनाई जाती थी। मकर संक्रांति का समय 80 से 100 सालों में एक दिन आगे बढ़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वी करीब 70 से 90 साल में अपनी धुरी पर पूरी तरह घूमने में एक अंश पीछे हो जाती है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने की वजह से ही दिन और रात होते हैं। मकर संक्रांति नई शुरुआत करने के लिए एक खास दिन होता है। साल में यही अकेले 24 घंटे में रात और दिन बराबर होते हैं। इस दिन के बाद से दिन बढ़ने लगता है और रात छोटी होने लगती है।
Nice post
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