विश्व में अपनी समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के लिए भारत की अपनी विशिष्ट पहचान है जिसके कारण पूरे वर्ष यहां कोई न कोई पर्व-त्योहार मनाया जाता रहता है लेकिन चित्रगुप्त पूजा एक ऐसा त्योहार है, जिसे प्रायः कायस्थ समाज के लोग ही मनाते हैं। क्योंकि चित्रगुप्त जी को वह अपना ईष्ट देवता मनाते हैं।
दरअसल पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें। इसके बाद बह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरुष कलम-दवात लिए खड़ा है। ब्रह्माजी ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला, मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य हैं और मेरे लिये कोई काम है तो बताएं। ब्रह्माजी ने हंसकर कहा, मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए ‘कायस्थ’ तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे।
धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। बाद में चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुए जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुए जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुए। चित्रगुप्त ने अपने पुत्रों को धर्म साधने की शिक्षा दी और कहा कि वे देवताओं का पूजन पितरों का श्राद्ध तथा तर्पण और ब्राह्मणों का पालन यत्न पूर्वक करें। इसके बाद चित्रगुप्त स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए और यमराज की यमपुरी में मनुष्य के पाप-पुण्य का विवरण तैयार करने का काम करने लगे।
कथा
भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुड़ी कोई न कोई लोककथा अवश्य है, जो प्राचीनकाल से सुनाई जाती रही है। प्राचीन काल में पृथ्वी पर सौराष्ट्र राज्य में सौदास नाम का राजा हुआ करता था। वह बहुत दुराचारी और अधर्मी था। उसने अपने राज्य में घोषणा कर रखी थी कि उसके राज्य में कोई भी दान-धर्म, हवन-तर्पण समेत अन्य धार्मिक कार्य नहीं करेगा। राजा की आज्ञा से वहां के लोग राज्य छोड़कर अन्य जगह चले गए। जो लोग वहां रह गए वे यज्ञ, हवन और तर्पण नहीं करते थे जिससे उसके राज्य में पुण्य का नाश होने लगा।
एक दिन राजा शिकार करने जंगल में निकला और रास्ता भूल गया। वहां पर उसने कुछ मंत्र सुने। जब वह वहां गया तो उसने देखा कि कुछ लोग भक्तिभाव से किसी की पूजा कर रहे हैं। राजा इस बात को लेकर काफी क्रुद्ध हुआ और उसने कहा- मैं राजा सौदास हूं। आप लोग मुझे प्रणाम करें। उसकी इस बात का किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया और वे अपनी पूजा में मग्न रहे। यह सब देखकर राजा क्रुद्ध हो गया और उसने अपनी तलवार निकाल ली। यह देखकर पूजा में बैठा सबसे छोटा लड़का बोला- राजन आप यह गलत कर रहे हैं। हम लोग अपने इष्टदेव चित्रगुप्त भगवान की पूजा कर रहे है और उनकी पूजा करने से सभी पाप कर्म मिट जाते हैं। यदि आप भी चाहे तो इस पूजा में हमलोगों के साथ शामिल हो जायें या हम लोगों को मार डालें।
राजा उस बालक की बात सुनकर काफी प्रसन्न हुआ और कहा तुझमें काफी साहस है। सौदास ने कहा, मैं भी चित्रगुप्त की पूजा करना चाहता हूं। कृपया इसके बारे में बतायें। राजा सौदास की बात सुनकर लोगों ने कहा कि घी से बनी मिठाई, फल, चंदन, दीप, रेशमी वस्त्र, मृदंग और विभिन्न तरह के संगीत यंत्र बजाकर इनकी पूजा की जाती है। इसके बाद वह बालक बोला इसके लिए पूजा का यह मंत्र …दवात कलम और हाथ में कलम, काठी लेकर पृथ्वी पर घूमने वाले चित्रगुप्त जी आपको नमस्कार है। चित्रगुप्तजी आप कायस्थ जाति में उत्पन्न होकर लेखकों को अक्षर प्रदान करते हैं। आपको बार-बार नमस्कार है।… जिसे आपने लिखने की जीविका दी, उसका पालन करते है इसलिये मुझे भी शांति दीजिए। राजा सौदास ने इसके बाद उनके बताए नियम का पालन करते हुए श्रद्धापूर्वक पूजा की और पूजा का प्रसाद ग्रहण कर अपने राज्य लौट गया।
कुछ समय बाद राजा सौदास की मृत्यु हो गयी। यमदूत जब उसे लेकर यमलोक गये तो यमराज ने चित्रगुप्त से कहा कि यह राजा बड़ा दुराचारी था इसकी क्या सजा है। इस पर चित्रगुप्त ने हंस कर कहा, मैं जानता हूं। यह राजा दुराचारी है और इसने कई पापकर्म किए हैं लेकिन इसने मेरी पूजा की है इसलिए मैं इस पर प्रसन्न हूं। अत: आप इसे स्वर्गलोक जाने की आज्ञा दें। और इसके बाद यम की आज्ञा से राजा स्वर्ग चला गया। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को यमुना के घर पर उनके भाई यम ने भोजन किया था। अत: यह दिन यम द्वितीया के तौर पर भी मनाया जाता है। यमुना ने यमराज को आयु बढ़ाने का वर दिया। ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करते हैं उनके घर सुख और समृद्धि बनी रहती है।
भगवान चित्रगुप्त की पूजन विधि
-सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर एक चौकी बनाएं। उस पर एक कपड़ा विछा कर चित्रगुप्त का चित्र रखें।
-दीपक जला कर गणपति जी को चंदन, हल्दी,रोली अक्षत, दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
-फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल) और पान सुपारी का भोग लगाएं।
-परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब, कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के सामने रखें।
-सभी सदस्य एक सफेद कागज पर चावल का आटा, हल्दी,घी, पानी व रोली से स्वस्तिक बनाएं। उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे- श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः, श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि।
-इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें, इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें। अब अपने हस्ताक्षर करें। और इसे पवित्र नदी में विसर्जित करें।
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