रामनवमी हिंदुओं का एक बड़ा और प्रमुख त्योहार माना जाता है। रामनवमी का त्योहार हर वर्ष मार्च से अप्रैल के बीच में पड़ता है यानी “चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि” को मनाया जाता है। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था।
राजा दशरथ जिनका प्रताप 10 दिशाओं में व्याप्त रहा। उन्होंने तीन विवाह किए थे लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। ऋषि मुनियों से जब इस बारे में विमर्श किया तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के पश्चात यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे राजा दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया।
कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा केकैयी को दिया इसके पश्चात कौशल्या और केकैयी ने अपने हिस्से से आधा-आधा हिस्सा तीसरी पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इसीलिए चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम जन्मे। केकैयी से भरत ने जन्म लिया तो सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।
वेद शास्त्रों के ज्ञाता और समस्त लोकों पर अपने पराक्रम का परचम लहराने वाले, विभिन्न कलाओं में निपुण लंकापति रावण के अंहकार के किले को ध्वस्त करने वाले पराक्रमी भगवान श्री राम का जन्मोत्सव देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कहते हैं अगर रामनवमी को भगवान राम की पूजा पूरी और उपवास पूरी श्रद्धा से की जाए तो भगवान जी भक्त की पुकार जल्दी सुनते हैं।
इस दिन लोग प्रात: काल स्नान करके उगते हुए सूर्य की सबसे पहले प्राथना करते हैं। सूर्य शक्ति का प्रतीक है और यह माना जाता है कि सूर्य भगवान राम के पूर्वज है। स्नान करने के बाद भक्त सारा दिन भगवान राम का स्मरण भजन और पूजन से करते हैं। घरों और मंदिरों में राम चरित मानस पढ़ी जाती है। इसके साथ ही भंडारे और प्रसाद को भक्तों के समक्ष वितरित किया जाता है। इस दिन काफी लोग व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि रामनवमी का उपवास रखने से सुख समृद्धि आती है और पाप नष्ट होते हैं।
इस पर्व के साथ ही मा दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुड़ा है। इस तथ्य से हमें ज्ञात होता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध में विजय प्रदान की। इस प्रकार रामनवमी के दिन दो महत्वपूर्ण त्योहारों होते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था।
भगवान विष्णु ने अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने के लिये हर युग में अवतार धारण किए। इन्हीं में एक अवतार यानी सातवां अवतार उन्होंने भगवान श्री राम के रुप में लिया था। पौराणिक ग्रंथों में जो कथाएं हैं उनके अनुसार भगवान राम त्रेता युग में अवतरित हुए। उनके जन्म का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना, मानव समाज के लिए एक आदर्श पुरुष की मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। यहां धर्म का अर्थ किसी विशेष धर्म के लिए नहीं बल्कि एक आदर्श कल्याणकारी समाज की स्थापना से है।
भगवान श्री राम को मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। उन्हें पुरुषोत्तम यानि श्रेष्ठ पुरुष की संज्ञा दी जाती है। वे स्त्री पुरुष में भेद नहीं करते। अनेक उदाहरण हैं जहां वे अपनी पत्नी सीता के प्रति समर्पित व उनका सम्मान करते नज़र आते हैं। वे समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को भी नहीं मानते। शबरी के झूठे बेर खाने का और केवट की नाव चढ़ने का उदाहरण इसे समझने के लिए सर्वोत्तम है।
Leave a Reply