लोक आस्था के महापर्व छठ का त्यौहार हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। छठ पूजा उत्तर भारत में बेहद अहम त्योहार या पर्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। चार दिनों तक होने वाले इस त्योहार को महापर्व भी कहते हैं। इस पर्व में भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्य देने का नियम है।
छठ लोक पर्व या प्रकृति पर्व भर नहीं है, यह सृष्टि का महापर्व है। इसमें लोग-परिवार के साथ खेती-किसानी, फल-फूल, नदी-जलाशय, सुग्गा-चिरई, पास-पडोस सब शामिल हैं। परिवार की महत्ता के साथ सामूहिकता का संदेश देता है यह महापर्व।
ऋग्वेद – सबसे पुराने वेद में है सूर्योपासना का वर्णन।
त्रेतायुग – बिहार में मुंगेर के महर्षि मुद्गल के आश्रम में पहली बार हुआ था छठ।
द्वापरयुग – धौम्य ऋषि के कहने पर अज्ञातवास के समय द्रौपदी ने किया था यह व्रत।
भविस्यपुराण – 42वें अध्याय में कृष्ण पुत्र साम्ब के मगध में सूर्य को अर्घ्य देकर कुष्ठ रोग से मुक्ति का वर्णन है।
आइये जानते हैं खास बातें
– छठ पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाई जाती है। यह चार दिवसीय महापर्व है जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है। इसके अलावा चैत महीने में भी यह पर्व मनाया जाता है जिसे चैती छठ पूजा कहते हैं।
– सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे ‘छठ’ कहा जाता है।
– मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है।
– पर्व का प्रारंभ ‘नहाय-खाय’ से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करते हैं।
– नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है।
– इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी (बांस से बना दउरा) में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है।
– इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य अर्पित करके व्रत तोड़ा जाता है।
– कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की रक्षा छठी माता करती हैं।
पुराने और नए समय में नहीं आया बदलाव
स्थान के साथ बदलती है परंपरा, नहीं होती छेड़छाड़
- छठ पर्व पवित्रता का प्रतिक है। आधुनिक समय में भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। स्थान के साथ परंपरा में बदलाव होता है।
- मगध में प्रचलित छठ व्रत दक्षिण बिहार अथवा भोजपुरी भाषी हिस्सों की पूजन विधियों में कुछ अंतर देखा जाता है।
- मिथलांचल में छठ में कोसी भरने की विशेष परंपरा है।इससें चार से सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है। छत्र के भीतर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर एक घड़ा रखा जाता है। हाथी की पूजा सिंदूर लगा कर की जाती है और
- फल आदि भी चढ़ाए जाते हैं।
पुरुष वर्ती पीली धोती और महिलाएं सूती साड़ी में करती हैं पूजा
समय के साथ कई चीजें बदली हैं, लेकिन छठ व्रतियों के पहनावे में बदलाव नहीं आया है। अमीर-गरीब सब पुरुष व्रती पीली धोती में पूजा करते हैं, वहीं महिला व्रती सूती साड़ी पहनती हैं। इसमें काला रंग वर्जित होता है। व्रती खरना के दिन जिस कपड़े का प्रयोग करते हैं, उसी में शाम और सुबह का भी अर्घ्य दिया जाता है। आज भी पहनावा पुराने समय जैसा ही है, क्यूंकि यह व्रतियों के हिसाब से आरामदायक है। सूती कपड़े में उन्हें व्रत करने में परेशानी नहीं हाेती है।
कार्तिकेय से जुड़ी हैं कथाएं
पहली कथा…
आसुरी शक्तियों को पराजित करने के लिए देवताओं के सेनानायक के रूप में कार्तिकेय को भेजा गया। पार्वती ने पुत्र की मंगल कामना के लिए सूर्य के समक्ष प्रण किया की यदि मेरा पुत्र विजयी लौटेगा तो आपकी पूजा विधिवत अर्घ्य देकर करूूंगी। कार्तिकेय लौटे तो पार्वती ने निष्ठापूर्वक निर्जला व्रत रखकर सायंकाल व प्रातःकाल उदयीमान सूर्य को जल एवं दूध से अर्घ्य देकर अपना व्रत तोड़ा।
दूसरी कथा…
छठ पर्व के संदर्भ में एक कथा स्कंद (कार्तिकेय) के जन्म से जुड़ी है। मां पार्वती ने स्कंद को सरकंडे के वन में छोड़ दिया। वन में 6 कृतिकाएं रहती थीं। उन्होंने स्कंद का लालन-पालन किया। कार्तिकेय की 6 माताएं हैं, इसी कारण उनका नाम स्कंद पडा। इन्हीं कृतिकाओं को छठी मइया या छठ माता कहा जाता है। यह घटना कार्तिक महीने में हुई, इसलिए पहले यह व्रत स्कंद षष्ठी के नाम से प्रसिद्ध था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को मनाने को लेकर 4 तरह की कहानियां प्रसिद्ध है। पढ़िए इस महापर्व से जुड़ी 4 कहानियां…….
1. सूर्य की उपासना से हुई राजा प्रियवंद दंपति को संतान प्राप्ति
बहुत समय पहले की बात है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे। उसी समय भगवान की भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है।
2. अयोध्या लौटने पर भगवान राम ने किया था राजसूर्य यज्ञ
विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिवाली के दिन भगवान राम अयोध्या पहुंचे। रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीते को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
3. जब कर्ण को मिला भगवान सूर्य से वरदान
छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
4. राजपाठ वापसी के लिए द्रौपदी ने की थी छठ पूजा
इसके अलावा महाभारत काल में छठ पूजा का एक और वर्णन मिलता है। जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाठ तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था।
… तो इन कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण है छठ
छठ पर्व की लोकप्रियता का कारण धार्मिक तो है ही, लेकिन लोग अब इसके वैज्ञानिक महत्व को भी मान रहे हैं। लोगों की आस्था के बीच लोक आस्था का यह महापर्व हमारे शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार छठ पर्व में ऐसी कई विधियां हैं जो इंसानों को स्वस्थ्य रखने के लिए बिल्कुल सही हैं। इस पर्व के विधि विधान में ऐसी कई चीजें हैं जिसे विज्ञान भी अपना समर्थन देता है। तो आइये जानते हैं कि इस महापर्व के वैज्ञानिक फायेद क्या हैं।
अर्घ्य का भी है वैज्ञानिक महत्व
डॉक्टर के अनुसार सूर्य देव की उपासना छठ पर्व से जुड़ा है। इसका पौराणिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व है। माना जाता है कि अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है।
इन्द्रियां रहती हैं नियंत्रित
छठ पूजा के दौरान के गजब की पवित्रता का अहसास होता है। छठ के व्रत में मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है। जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने का भी खास महत्व है, क्योंकि दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य की अग्नि के माध्यम से ऊर्जा का संचय होता है। इससे शरीर सर्दी में स्वस्थ रहता है। सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं। खासतौर से छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है। इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है।
साफ-सफाई के संदेश
साफ-सफाई और शुद्धता का ख्याल सभी पर्व त्योहारों में रखते हैं। लेकिन जब बात लोक आस्था के महापर्व छठ की आती है तो यहां सफाई और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है। दीपावली के बाद से ही महापर्व छठ की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। निरोगी शरीर के लिए साफ-सफाई जरूरी है। महापर्व छठ हमें संदेश देता है कि स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता जरूरी है।
खान-पान का भी है विशेष महत्व
जानकारों के अनुसार छठ पर्व के दौरान मौसम में बदलाव होता है और बदलते मौसम में खान-पान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि हम जैसा भोजन करते हैं हमारा शरीर वैसे ही रिएक्ट करता है। छठ पूजा में हम जिन सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं वो आसानी से मिलने वाले होते हैं। विज्ञान भी मानता है छठ में इस्तेमाल होने वाले फल और अन्न शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं।
उपवास के भी हैं फायदे
महापर्व छठ में व्रती 36 घंटे तक उपवास रखते हैं। मेडिकल साइंस में भी उपवास के महत्व की चर्चा है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि छठ के समय उपवास से शरीर को काफी फायदा होता है। धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ के कई फायदे बताए गए हैं। विज्ञान का भी मानना है कि छठ एक पर्व नहीं है। ये शरीर और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है। शायद यही कारण है कि इसे लोक आस्था का पर्व नहीं महापर्व का जाता है।
भाईचारे का संदेश देता है पर्व
मुस्लिम महिलाएं बनाती हैं मिट्टी के चूल्हे
लोक आस्था के इस महापर्व की तैयारी में मुस्लिम महिलाएं भी अपना योगदान देती हैं। छठ का प्रसाद जिन नए चूल्हों पर बनता है, उनका निर्माण आमतौर पर मुस्लिम महिलाएं ही करती हैं।
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