छठ पूजा मनाने के पीछे प्रचलित हैं ये खास बातें और कहानियाँ, …जानिए

लोक आस्था के महापर्व छठ का त्यौहार हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। छठ पूजा उत्तर भारत में बेहद अहम त्योहार या पर्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। चार दिनों तक होने वाले इस त्योहार को महापर्व भी कहते हैं। इस पर्व में भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्य देने का नियम है।

आइये जानते हैं खास बातें
– छठ पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाई जाती है। यह चार दिवसीय महापर्व है जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है। इसके अलावा चैत महीने में भी यह पर्व मनाया जाता है जिसे चैती छठ पूजा कहते हैं।
– सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे ‘छठ’ कहा जाता है।

– मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है।
– पर्व का प्रारंभ ‘नहाय-खाय’ से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करते हैं।
– नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है।

– इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी (बांस से बना दउरा) में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है।
– इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य अर्पित करके व्रत तोड़ा जाता है।
– कहा जाता है कि जो व्यक्ति इन दोनों की अर्चना करता है उनकी संतानों की रक्षा छठी माता करती हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को मनाने को लेकर 4 तरह की कहानियां प्रसिद्ध है। पढ़िए इस महापर्व से जुड़ी 4 कहानियां…….

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1. सूर्य की उपासना से हुई राजा प्रियवंद दंपति को संतान प्राप्ति
बहुत समय पहले की बात है राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के निर्देश पर इस दंपति ने यज्ञ किया जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से यह उनका बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। इस घटना से विचलित राजा-रानी प्राण छोड़ने के लिए आतुर होने लगे। उसी समय भगवान की भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होगी। राजा प्रियंवद और रानी मालती ने देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। और तभी से छठ पूजा होती है।

2. अयोध्या लौटने पर भगवान राम ने किया था राजसूर्य यज्ञ
विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के वध के बाद दिवाली के दिन भगवान राम अयोध्या पहुंचे। रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने ऋषि-मुनियों की सलाह से राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए अयोध्या में मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीते को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इसके बाद मां सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।

3. जब कर्ण को मिला भगवान सूर्य से वरदान
छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।

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4. राजपाठ वापसी के लिए द्रौपदी ने की थी छठ पूजा
इसके अलावा महाभारत काल में छठ पूजा का एक और वर्णन मिलता है। जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाठ तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था।

… तो इन कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण है छठ
छठ पर्व की लोकप्रियता का कारण धार्मिक तो है ही, लेकिन लोग अब इसके वैज्ञानिक महत्व को भी मान रहे हैं। लोगों की आस्था के बीच लोकअस्था का यह महापर्व हमारे शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार छठ पर्व में ऐसी कई विधियां हैं जो इंसानों को स्वस्थ्य रखने के लिए बिल्कुल सही हैं। इस पर्व के विधि विधान में ऐसी कई चीजें हैं जिसे विज्ञान भी अपना समर्थन देता है। तो आइये जानते हैं कि इस महापर्व के वैज्ञानिक फायेद क्या हैं।

साफ-सफाई के संदेश
साफ-सफाई और शुद्धता का ख्याल सभी पर्व त्योहारों में रखते हैं। लेकिन जब बात लोक आस्था के महापर्व छठ की आती है तो यहां सफाई और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है। दीपावली के बाद से ही महापर्व छठ की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। निरोगी शरीर के लिए साफ-सफाई जरूरी है। महापर्व छठ हमें संदेश देता है कि स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता जरूरी है।

अर्घ्य का भी है वैज्ञानिक महत्व
डॉक्टर के अनुसार सूर्य देव की उपासना छठ पर्व से जुड़ा है। इसका पौराणिकता के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व है। माना जाता है कि अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान इसकी रोशनी के प्रभाव में आने से कोई चर्म रोग नहीं होता और इंसान निरोगी रहता है।

इन्द्रियां रहती हैं नियंत्रित
छठ पूजा के दौरान के गजब की पवित्रता का अहसास होता है। छठ के व्रत में मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होता है। जल में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने का भी खास महत्व है, क्योंकि दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इसलिए व्रत के साथ सूर्य की अग्नि के माध्यम से ऊर्जा का संचय होता है। इससे शरीर सर्दी में स्वस्थ रहता है। सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं। खासतौर से छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है। इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है।

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खान-पान का भी है विशेष महत्व
जानकारों के अनुसार छठ पर्व के दौरान मौसम में बदलाव होता है और बदलते मौसम में खान-पान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि हम जैसा भोजन करते हैं हमारा शरीर वैसे ही रिएक्ट करता है। छठ पूजा में हम जिन सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं वो आसानी से मिलने वाले होते हैं। विज्ञान भी मानता है छठ में इस्तेमाल होने वाले फल और अन्न शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं।

उपवास के भी हैं फायदे
महापर्व छठ में व्रती 36 घंटे तक उपवास रखते हैं। मेडिकल साइंस में भी उपवास के महत्व की चर्चा है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि छठ के समय उपवास से शरीर को काफी फायदा होता है। धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ के कई फायदे बताए गए हैं। विज्ञान का भी मानना ​​है कि छठ एक पर्व नहीं है। ये शरीर और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है। शायद यही कारण है कि इसे लोक आस्था का पर्व नहीं महापर्व का जाता है।

संस्कृति से जुड़ा होता पहनावा और परिधान
छठ के पर्व में सादगी का खास ध्यान रखा जाता है। आधुनिकता के दौर में भी छठ ही एक ऐसा पर्व है जो संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा हुआ है। लोक आस्था के इस पर्व में अमीर-गरीब सब सूती के कपड़े का ही इस्तेमाल करते हैं। इसके पीछे धार्मिक मान्यता तो है ही साथ ही यह विज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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