धनतेरस का मतलब क्या होता है? ….जानिए धनतेरस पर कैसे करें पूजा

दिवाली से पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से ही दिवाली पर्व का प्रारंभ हो जाता है और मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां की जाती हैं। इसके ठीक दो दिन बाद दिवाली मनाई जाती है।

धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। धनतेरस यानी अपने धन को तेरह गुणा बनाने और उसमें वृद्धि करने का दिन। इसी दिन भगवान धनवन्तरी का जन्म हुआ था जो कि समुन्द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है।

‘धन’ का मतलब समृद्धि और ‘तेरस’ का मतलब तेरहवां दिन होता है। ‘कारोबारियों के लिए धनतेरस का खास महत्व होता है क्योंकि धारणा है कि इस दिन लक्ष्मी पूजा से समृद्धि, खुशियां और सफलता मिलती है। साथ ही सभी के लिए इस पूजा का खास महत्व होता है। लक्ष्मी के पैरों के संकेत के तौर पर रंगोली से घर के अंदर तक छोटे छोटे पैरों के चिह्न बनाए जाते हैं। शाम को 13 दिए जला कर लक्ष्मी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी पूजा से समृद्धि, खुशियां और सफलता मिलती है। सौभाग्य सूचक के तौर पर धनतेरस के दिन दिन लोग सोना या चांदी या बर्तन खरीदते हैं। जमीन, कार खरीदने, निवेश करने और नए उद्योग की शुरूआत के लिए भी यह दिन शुभ माना जाता है।

READ:  कामाख्या से चलकर थावे पहुंची थीं मां भवानी, ...जानिए

गांवों में इस दिन लोग पशुओं की पूजा करते हैं। वह मानते हैं कि उनकी आजीविका पशुओं से चलती है इसलिए आय के स्रोत के तौर पर उनकी पूजा करना चाहिए। दक्षिण भारत में इस दिन गायों को खूब सजाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है। गायों को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।

पूजन विधि
सबसे पहले नहाकर साफ वस्त्र पहनें। भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धन्वंतरि का आह्वान इस मंत्र से करें:

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,
अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

इसके बाद पूजा स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। आचमन के लिए जल छोड़ें। भगवान धन्वंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के बर्तन में खीर का भोग लगाएं। (अगर चांदी का बर्तन न हो तो अन्य किसी बर्तन में भी भोग लगा सकते हैं।)

इसके बाद पुन: आचमन के लिए जल छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वंतरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वंतरि को अर्पित करें। रोग नाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें:

ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।।

इसके बाद भगवान धन्वंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजा के अंत में कर्पूर आरती करें।

अब लक्ष्मी-गणेश व कुबेर की पूजा
धनवन्तरी की पूजा के बाद यह जरूरी है कि लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाए। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ाएं। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं। इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। इसके अलावा इस दिन धनतेरस पूजन के लिए भगवान कुबेर की पूजा करें।

READ:  जानें विश्वकर्मा पूजा का महत्‍व और पूजन विधि