बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती की दाहिनी जांघ यहीं गिरी थी। वैसे तो पूरे साल माँ के दर्शन के लिए लोगों को तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रों में ख़ासकर शारदीय नवरात्र में इस शक्तिपीठ की छटा देखते ही बनती है। सती के 51 शक्तिपीठों में प्रमुख इस उपासना स्थल में माता की तीन स्वरूपों वाली प्रतिमाएं विराजित हैं। पटन देवी भी दो हैं- छोटी पटन देवी और बड़ी पटन देवी, दोनों के अलग-अलग मंदिर हैं।
पटना की नगर रक्षिका भगवती पटनेश्वरी हैं जो छोटी पटन देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। यहां मंदिर परिसर में मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की स्वर्णाभूषणों, छत्र व चंवर के साथ विद्यमान हैं। लोग प्रत्येक मांगलिक कार्य के बाद यहां जरूर आते हैं। इस मंदिर के पीछे एक बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसे ‘पटनदेवी खंदा’ कहा जाता है। कहा जाता है कि यहीं से निकालकर देवी की तीन मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया गया था।
बड़ी पटन देवी मंदिर भी शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि महादेव के तांडव के दौरान सती के शरीर के 51 खंड हुए। ये अंग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित की गई। यहां सती की दाहिनी जांघ गिरी थी। गुलजार बाग इलाके में स्थित बड़ी पटन देवी मंदिर परिसर में काले पत्थर की बनी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा स्थापित हैं। इसके अलावा यहां भैरव की प्रतिमा भी है।
यहां के बुजुर्गों का कहना है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में यह मंदिर काफी छोटा था। इस मंदिर की मूर्तियां सतयुग की बताई जाती हैं। मंदिर परिसर में ही योनिकुंड है, जिसके विषय में मान्यता है कि इसमें डाली जाने वाली हवन सामग्री भूगर्भ में चली जाती है। देवी को प्रतिदिन दिन में कच्ची और रात में पक्की भोज्य सामग्री का भोग लगता है। यहां प्राचीन काल से चली आ रही बलि की परंपरा आज भी विद्यमान है।
भक्तों की मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से यहां आकर मां की अराधना करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। यहां वैदिक और तांत्रिक विधि से पूजा होती है। वैदिक पूजा सार्वजनिक होती है, जबकि तांत्रिक पूजा मात्र आठ-दस मिनट की होती है। परंतु इस मौके पर विधान के अनुसार, भगवती का पट बंद रहता है। वे बताते हैं कि सती की यहां दाहिनी जांघ गिरी थी, इस कारण यह शक्तिपीठों में से एक है। वे कहते हैं कि यह मंदिर कालिक मंत्र की सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है।
नवरात्र में यहां महानिशा पूजा की बड़ी महत्ता है। जो व्यक्ति अर्धरात्रि के समय पूजा के बाद पट खुलते ही 2.30 बजे आरती होने के बाद मां के दर्शन करता है उसे साक्षात् भगवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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