आदिशक्ति माँ दुर्गा का छंटवा रूप है माँ कात्यायनी का माँ असुरो तथा दुष्टो का नाश करने वाली है। जब महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया तो देवताओ के कार्य को सिद्ध करने के लिए देवी माँ ने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर में उनकी पुत्री के रूप में जनम लिया इसलिए उनके नाम कात्यायनी पड़ा भगवन कृष्ण को पाने के लिए रुक्मणी ने इन्ही की तपस्या की थी।
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है । देवी कात्यायनी का स्वरूप परम दिव्य और सुवर्ण (सोने) के समान चमकीला है । शास्त्रों के अनुसार देवी के स्वरुप का वर्णन चतुर्बाहु (चार भुजा) देवी के रूप में किया गया है ।
देवी कात्यायनी के ऊपर वाले बाएं हाथ में कमल का फूल है। इन्होंने नीचे वाले बाएं हाथ में तलवार धारण की हुई है । इनका ऊपर वाला दायां हाथ अभय मुद्रा में है जो की भक्तों को सांसारिक सुख और अभय दान प्रदान कर रहा है । इनका नीचे वाला दायां हाथ वरदमुद्रा में है जो के भक्तों को वरदान दे रहा है । देवी कात्यायनी के विग्रह में इन्हें सिंह पर विराजमान बताया गया है । इन्होने पीत (पीले) रंग के वस्त्र पहने हुए हैं । इनके शरीर और मस्तक नाना प्रकार के स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित हैं। इनकी छवि परम कल्याणकारी है जो सम्पूर्ण जगत को सौभाग्य की प्राप्ति कराती हैं ।
नवरात्र की षष्ठी तिथि को देवी कात्यायिनी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन देवी कात्यायनी जी की षोडश उपचार से पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । इनकी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय गौधूलि वेला है । इनकी पूजा पीले फूलों से करनी चाहिए । इन्हें बेसन के हलवे का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें हल्दी अर्पित करना शुभ होता है । इनकी साधना से दुर्भाग्य की समाप्ति होती है, सौभाग्य की प्राप्ति होती है । मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं ।
माँ कात्यायनी की पूजन हेतु मन्त्र:
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
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