आराध्य देवी मां कृष्ण काली भगवती मां तेलडीहा शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की मुराद पूरी करती है मां तेलडीहा। बांका जिला के शंभूगंज प्रखंड अंतर्गत बडुआ नदी के किनारे तेलडीहा गांव में अवस्थित मां दुर्गा का मंदिर लोगों के आस्था का केन्द्र है।
वर्ष 1603 में स्थापित माता का मंदिर आज बिहार ही नहीं विभिन्न प्रांतों के लोगों के आस्था के केन्द्र के लिए जाना जाता है। खासकर शारदीय नवरात्र और वासंती नवरात्र के मौके पर माता के दरबार में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। शारदीय नवरात्र में तो अष्टमी और नवमी तिथि को यहां भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालुओं जुटते हैं। मां तेलडीहा के दरबार में आज भी बलि प्रथा का प्रचलन है।
मंदिर के अंदर आज भी कच्ची पिंडी विराजमान है
समय के साथ साथ तेलडीहा मंदिर का भक्तों ने विकास किया। मंदिर को पूरी तरह पक्की और आकर्षक बनाया गया लेकिन आज भी मंदिर के अंदर की जमीन और माता का पिंडी कच्ची मिट्टी का ही है। यहां के लोगों का कहना है कि माता का यह आदेश है कि पिंडी कच्ची ही रहेगी।
बंगाल के हरिबल्लभ दास ने की थी स्थापना
बंगाल निवासी हरिबल्लभ दास दो भाई थे। दोनों भाई भगवती के उपासक थे। किसी विवाद के कारण हरिबल्लभ दास अपने घर से भाग कर तेलडीहा स्थित श्मशान पहुंच गए। बडुआ नदी के किनारे 105 नरमुंड के उपर उन्होंने माता को स्थापित किया। इसके बाद यहां तांत्रिक पूजा शुरू हुई जो आजतक चल रही है।
हरिबल्लभ दास के वंशज ही हैं मेढ़़पति
मां तेलडीहा का पूजा अर्चना का दायित्व आज भी इस मंदिर के संस्थापक हरिबल्लभ दास के वंशज ही कर रहे हैं। इन्हें यहां के मेढ़पति के रूप में जाना जाता है। उन्हीं की निगरानी में पूजा अर्चना का कार्य संपन्न होता है।
कहते हैं पंडित
तेलडीहा निवासी मेढपति अनिरूद्धचन्द्र दास, शंकर दास ने बताया कि मंदिर की महिमा अपरंपार है। यहां आने वाले हर भक्तों की मुराद मां पूरा करती है। यहां वर्ष भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है।
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