इन वजहों से आज तक मनाया जाता है रक्षाबंधन, …जानिए

रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन धूम-धाम से मनाया जाता है। हर साल इस दिन बहन अपने भाई के ललाट पर तिलक लगाती है। कलाई पर राखी बांधती है और भाई का मुंह मीठा कराती है। जानिए हर विधि में छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्य को, भाई की कलाई पर ही राखी क्यों बांधी जाती है और रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है?

तिलक लगाना
तिलक लगाते समय बहन-भाई को स्मृति दिलाती है कि हम आत्मा रूप में भाई-भाई हैं और शरीर के संबंध से बहन-भाई। हमारा पिता अविनाशी है। इसलिए तुम अपने जीवन का दैवी गुणों से श्रृंगार कर सदैव इस संसार में अमर रहो।

मुख मीठा कराना
तिलक लगाने के बाद बहन, भाई का मुख मीठा कराती है। इसका रहस्य यह है कि तुम्हारे मुख से सदैव मीठे बोल निकलें और तुम सदैव दूसरों को मीठे वचनों की मिठाई बांटते रहो।

कलाई पर राखी बांधना
बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है। भाई की कलाई पर ही राखी बांधने के तीन प्रमुख कारण हैं जो इस प्रकार हैं….
आध्यात्मिक कारण
कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु कृपा से सुरक्षा और महेश की कृपा से सभी दुर्गुणों का नाश होता है। लक्ष्मी की कृपा से धन-दौलत, सरस्वती की कृपा से बुद्धि-विवेक तथा दुर्गा की कृपा से शक्ति की प्राप्त होती है।

आयुर्वेदिक कारण
आयुर्वेद के अनुसार शरीर की प्रमुख नसें कलाई से होकर गुजरती है जो कलाई से ही नियंत्रित भी होती हैं। कलाई पर रक्षासूत्र बांधने से त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का नाश होता है। इसके अलावा इससे लकवा, डायबिटीज, हृदय रोग, ब्लड-प्रेशर जैसे रोगों से भी सुरक्षा होती है

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मनोवैज्ञानिक कारण
रक्षासूत्र बांधने से मनुष्य को किसी बात का भय नहीं सताता है। मानसिक शक्ति मिलती है, मनुष्य गलत रास्तों पर जाने से बचता है। मन में हमेशा शांति और पवित्रता बनी रहती है।

चलिए अब जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण…
सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है। राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है।

पौराणिक संदर्भ के मुताबिक
पौराणिक कथाओं में भविष्य पुराण के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले अपनी पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया था। इसलिए इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी।

एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है। आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है। इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है।

ऐतिहासिक संदर्भ के मुताबिक
ये भी एक मिथ है कि है कि महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया। बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी।

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ये भी कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया।

एक और कथा के मुताबिक ये माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाते हुए बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनका राज्य हड़प रहा था। अलग धर्म होने के बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया।

रक्षाबंधन का संदेश
रक्षाबंधन दो लोगों के बीच प्रेम और इज्जत का बेजोड़ बंधन का प्रतीक है। आज भी देशभर में लोग इस त्योहार को खुशी और प्रेम से मनाते है और एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन देते है।