आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में विख्यात है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, कौमुदी व्रत और रासपूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात्रि सर्वाधिक मनोरम और स्वास्थ्यवर्धक होती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को अमृत की वर्षा होती है। इस रात्रि को चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर पृथ्वी के समीप जाता है। शरद पूर्णिमा की चांदनी प्रेमी हृदय को राग और रंग से भर देती है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात्रि को महारासलीला रचाई थी। इसमें सोलह हजार गोपियों ने कृष्ण के साथ नृत्य की साक्षात अनुभूति की थी। इसमें समस्त देवी-देवता, ग्वाल-बाल एकरस थे, संपूर्ण जड़-चेतन प्रकृति एकप्राण। तबसे शरद पूर्णिमा की रात्रि में संपूर्ण मथुरा और वृन्दावन में तथा अन्य स्थानों पर भी रासलीला के आयोजन का प्रचलन है।
भगवान श्रीकृष्ण भी चंद्रवंशी थे, सोलह कलाओं से युक्त भी। उन्होंने स्वयं कहा है-‘पुष्णामि चौषधीःसर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः। ‘अर्थात-मैं अमृतमय चंद्र होकर संपूर्ण औषधियों को पुष्ट करता हूं। वैद्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को खुले आकाश में विशेष रूप से औषधियां बनाते है जिससे चंद्रमा की किरणों से उसके प्रभाव में वृद्धि होती है।
रात में विचरण करती हैं देवी लक्ष्मी
शास्त्रोंमें उल्लेख है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान शिव पार्वती जी के साथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्नता के साथ विचरण करते हैं। संपूर्ण कैलाश चंद्रमा के प्रकाश से आलोकित हो उठता है। चंद्रमा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। समुद्र मंथन से उत्पन्न विष से संसार को बचाने के लिए उन्होंने उस विष को कंठ में धारण किया। विष के ताप को कम कर शीतलता प्रदान करने में चंद्रमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अपने प्रिय चंद्रमा के सर्वगुण संपन्न सोलह कलाओं से पूर्ण होने के कारण भगवान शिव भी उस दिन अत्यंत प्रसन्न रहते हैं। इस दिन चंद्रमा की पूजा से भगवान शिव भक्तों पर कृपा की वर्षा करते है। इस अवसर पर शिव, कार्तिकेय और पार्वती की भी पूजा होती है। चंदा मामा और मां लक्ष्मी का संबंध भाई-बहन का है। शास्त्रीय मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती हैं और उस दिन रात्रि जागरण कर चंद्रमा की पूजा करने वाले पर सदैव प्रसन्न रहती हैं।
शास्त्रों में यह भी चर्चा है कि रावण चंद्रमा की किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था, जिससे उसे नवयौवन की प्राप्ति होती थी। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को विशेष रूप से और शरद की अन्य रात्रियों को भी दस से बारह बजे के मध्य चांदनी का सेवन करने से व्यक्ति को नवीन ऊर्जा और कांति प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण विशेष ऊर्जा का संग्रह होता है।
खीर जरूर खाएं
शरद पूर्णिमा की खीर प्रसिद्ध और पवित्र प्रसाद है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर का प्रसाद बनाकर उसे जालीदार वस्त्र से ढंककर चांदनी में कम से कम तीन-चार घंटे तक छोड़ दिया जाता है। यह खीर यदि चांदनी में चांदी या मिट्टी के खुले मुंह के बर्तन में पकाई जाए तो और भी स्वास्थ्यप्रद होता है, क्योंकि चन्द्रमा की किरणों के समाहित होने से यह खीर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है और आरोग्य प्रदान करती है। आयुर्वेदिक मान्यता है कि उस खीर में यदि दूध के साथ पीपल की छाल भी पकाई जाए तो शरद पूर्णिमा की चन्द्रकिरणें उसमें ऐसा औषधीय प्रभाव बनाती है कि वह दमा रोगियों के लिए अत्यंत लाभप्रद होता है।
क्या कहता है विज्ञान?
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा हमारी धरती के बहुत करीब होता है। इसीलिए चंद्रमा के प्रकाश में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर गिरते हैं। खाने-पीने की चीजें खुले आसमान के नीचे रखने से चंद्रमा की किरणे सीधे उन पर पड़ती है जिससे विशेष पोषक तत्व खाद्य पदार्थों में मिल जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए अनुकूल होते हैं। शरद् पूर्णिमा महत्व पुराणों में बताया गया है, जो वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। वहीं यह हमारे स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। हमारी परंपराओं से जुड़़ी इस रात में क्या करें? क्या ना करें? यह भी बताया गया है।
इस रात क्या करें और क्या ना करें:-
1.चांद को हर 10 से 15 मिनट पर तीन से पांच बार तक लगभग पांच-सात मिनट तक एकटक देंखें। आंखों की ज्योति ठीक हो जाएगी। कई सारे इनफेक्शन खत्म हो सकते हैं।
2.सोने या चांदी के कटोरे में खीर रख कर उसे पूरी रात चांद के सामने रखने से उसमें जीवनीशक्ति भर जाती है। उसे खाने से जीवनीशक्ति में सुधार होता है। इंद्रियों में ताकत आती है।
3.गर्भवती महिलाओं के लिए यह रात विशेष गुणकारी है। ऐसी महिलाएं एकांत रात में इस तरह से सोएं कि नाभि पर चांद की किरणें पड़ें। इससे गर्भस्थ बच्चे को पुष्टि मिलती है। कुछ खास बीमारियों से बच्चे को बचाव होता है।
4.आज चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे सोएं और कम कपड़े पहनें, ताकि हमारे शरीर के जलीय अंश को चंद्रमा की किरणों का फायदा मिले। इससे मानसिक और शारीरिक तौर पर शांति महसूस होगी। बुद्धि में नयापन और पैनापन आएगा।
5.आज की रात खुली चांदनी में सुई में धागा डालने की कोशिश करें, इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।
6.आज की रात हो सके तो सेक्स करने से बचें। कहा जाता है कि इससे संतान को अथवा स्वयं को जानलेवा बीमारी हो सकती है। साथ ही मन को काबू में रखें और चांद की किरणों का सेवन करें इससे मानसिक शांति मिलेगी।
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