जानिए होली से एक दिन पहले क्यों किया जाता है होलिका दहन, क्या है इसकी खासियत

रंगों का त्योहार होने के बावजूद होली को काफी महत्व है। हिंदूओं का प्रमुख त्योहार है होली। सामाजिक और सांस्कृतिक ऐसे बहुत से कारण है जिनकी वजह से लोग होली का त्योहार मनाते हैं और उसका आनंद लेते हैं। होली के दिन हर कोई रंगों की मस्ती में डूबा हुआ नजर आता है। होली के त्योहार को मनाने की परंपरा कई सालों से चली आ रही है। होली के दिन हवा में गुलाल उड़ता दिखाई देता है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े स्थानों पर होली का एक अलग ही रंग देखने को मिलता है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव और बनारस की होली काफी प्रसिद्ध है। बनारस की लट्ठमार होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है। होली के पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है।

होली के मौके पर होलिका दहन का ​ए​क विशेष महत्व है। होली का त्योहार बुराई रुपी होलिका के अंत और प्रह्लाद के रुप में अच्छाई की जीत को दर्शता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन को होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। होलिका दहन सूरज ढलने के बाद प्रदोष काल शुरू होने के बाद जब पूर्णमासी तिथि चल रही होती है तब किया जाता है। होलिका दहन का धार्मिक महत्व भी है लोग हो​ली ही इस अग्नि में जौ को सेंकते हैं और उसे अपने घर लेकर जाते हैं।

इसके अलावा लोग होलिका दहन की आग में पांच उपले भी जलाते हैं ताकि उनकी सभी मुश्किलें खत्म हो जाएं और होलिका माता से प्रार्थना करते हैं कि उनकी सभी परेशानियां समाप्त हो जाएं। कहा जाता है कि हिरण्याकश्यप नाम का राजा था, उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि वह भगवान की जगह उसकी पूजा करें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता के इस आदेश को न मान कर भगवान के प्रति अपनी आस्था हमेशा बनाए रखी।

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एक दिन हिरण्याकश्यप ने अपने बेटे को सजा देने का फैसला किया। होलिका हिरण्याकश्यप की बहन थी अपने भाई की बात मनाते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे वह अपने ​शरीर पर लपेट लेती थी तो आग उसे छू भी नहीं सकती थी। वहीं आग में बैठने के दौरान प्रह्लाद भगवान विष्णु का स्मरण करता रहा। उसके बाद होलिका का वह कपड़ा उड़कर प्रह्लाद के उपर आ गया जिसकी वजह से उसकी जान बच गई और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से होली के अवसर पर होलिका दहन की यह प्रभा चली आ रही है।