बिहार के बक्सर में श्रीराम के आस्था की परंपरा हजारों साल पुरानी है। रामलीला की जीवंत शुरुआत यहीं सवा सौ साल पहले हुई थी। सवा सौ वर्ष पहले रामलीला का आयोजन लोक स्वास्थ्य प्रमंडल कार्यालय परिसर में कराया जाता था। इसके उपरांत व्यवसायियों के सहयोग से इसे श्रीचंद मंदिर के निकट कराया जाने लगा। शनै:-शनै: विस्तार होता चला गया और आज किला का रामलीला मंच भी ‘रावण वध’ के दिन आस्थावानों की भीड़ को देख छोटा प्रतीत होने लगा है।
लेकिन प्रभु श्रीराम की जीवनी को रामलीला के माध्यम से देखनेवालों को यह जानना चाहिए कि अस्त्र-शस्त्र की विद्या अर्जित करने के बाद सीता स्वयंवर में भाग लेने भगवान यहीं से गुरु विश्वामित्र के साथ जनकधाम गए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गुरु महर्षि विश्वामित्र की यह तपोभूमि है। यही वह जगह है जहां श्रीराम व लक्ष्मण ने शस्त्र की शिक्षा ग्रहण कर राक्षसी प्रवृत्तियों का संहार किया था।
कई नाम से वर्णित नगरी
पुराणों में सिद्ध भूमि बक्सर के कई नाम वर्णित हैं। जैसे सिद्धाश्रम, व्याघ्रसर, वेदगर्भापुरी, वामनाश्रम व बगसर और अब बक्सर…। धार्मिक आख्यानों के मुताबिक महर्षि विश्वामित्र अपने दोनों शिष्य राम-लक्ष्मण संग यहीं रामरेखा घाट से गंगा पार कर राजा जनक के दरबार में पहुंचे थे और सीता स्वयंवर में भाग लिया था। तब, यज्ञराज साकेत की वरद पुत्री तारिका (ताड़का) का वध भी यहीं हुआ था। यहां रामेश्वर मंदिर में शिवलिंग की स्थापना श्रीराम ने अपने हाथों की थी।
रोचक जानकारी
परमेश्वर श्रीहरि की लीला अनन्त है।