अनंत चतुर्दशी के दिन भुजा में अनंत बांधने का कारण और पूजा विधि

पूरे दस दिनों तक चले गणेशोत्सव के बाद भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष के चतुर्दशी को भगवान गणेश की विदाई की जाती है और इसी दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी मनाया जाता है। इस दिन अनंत भगवान जी की पूजा की जाती है। पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत धारण करती हैं। इस व्रत को करने से सभी कष्ट दूर होते है और धन-धान, विद्या की प्राप्ति होती है। जानिए अनंत चतुर्दशी का महत्व , पूजा विधि और कारण।

अनंत चतुर्दशी की कथा
यह कथा हिंदू धर्म की पवित्र ग्रंथ महाभारत में दी गई है। इसके अनुसार यह व्रत महाभारत काल में किया गया था। एक बार महाराज युदिष्ठर ने राजसूर्य यज्ञ किया। इस यज्ञ के लिए मंदप को बहुत ही अद्भुत तरीके से सजाया गया। यह इस तरह बनाया गया कि जल की जगह स्थल और स्थल की जगह जल दिख रहा था। दुर्योधन इस मंडप की शोभा निहारते हुए जा रहे थे तभी वह जल को स्थल समझकर कुंड में जा गिरें। जिसे देखकर द्रोपदी नें कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है। जो बात दुर्योधन को लग गई और उसनें बदला लेने की ठान ली।

आगे चलकर योजना के तहत दुर्योधन ने पांडवों के हस्थिनापुर बुलाया और जुए में छल से उन्हें परास्त कर दिया। जिसके कारण पांडवों को अनेक कष्ट सहनें पड़े और 12 साल वनवास की तरह काटना पड़ा। साथ ही पांडवों ने जउए में द्रोपदी को भी लगाया जिसे वह हार गए। जिसके कारण दुर्योधन ने भरी सभा में अपनी बदला लेने के लिए द्रोपदी का चीर हरण करने कि ठान ली, लेकिन द्रोपदी के पुकारनें पर कृष्ण भगवान ने द्रोपदी की लाज बचाई थी। जब श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर से इस बारें में पूछा तो उन्होनें सब हाल कह दिया और इससे बचनें का उपाय पूछा। तब श्री कृष्ण ने अनंत चतुर्दशी का व्रत के बारें में बताया और कहा कि इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारा खोया हुआ राज वापस मिल जाएगा और सारें कष्ट मिट जाएगें। साथ में यह कथा भी सुनाई।

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एक बार कौटिल्य श्रृषि ने अपनी पत्नी सुशीला से उनके हाथ में बंधे 14 गांठ के धागे के बारें में पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान की पूजा के बारे सब कुछ बताया। तब श्रृषि ने अप्रसन्न होकर वो धागा तोड़कर आग में डाल दिया। यह अनंत भगवान का अपमान था जिसके कारण कौटिल्य की सुख-शांति नष्ट हो गई। तब पश्चाताप करते हुए कौटिल्य अनंत भगवान की खोज में में वन में चलें गए। एक दिन भटकते-भटकते निराश होकर गिर गए और बेहोश हो गए। तब भगवान अनंत ने दर्शन देकर कहा कि हे कौटिल्य! मेरा अपमान करनें के कारण ही तुम्हारा यह हाल हुआ है, लेकिन अब में प्रसन्न हूं और तुम आश्रम जाकर 14 साल तक अनंत भगवान का विधि विधान से व्रत करो जब जाकर तुम्हारें कष्टों का निवारण होगा। तब कौटिल्य ने ऐसा ही किया और 14 साल बाद उसके सभी कष्ट दूर हो गए।

भगवान श्री कृष्ण की यह बात सुनकर युधिष्ठर नें भी 14 साल तक इस व्रत को रखा। यानि की 12 साल के वनवास, एक साल का अज्ञात वास और युद्ध में रहे। जिसके कारण उन्हें 14 साल बाद अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। जब से यह व्रत शुरु हुआ।

ऐसे करें पूजा
सुबह स्नान और नित्यकर्मो से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। इस कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें। इसके आगे कुमकूम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का 14 गांठों वाला ‘अनंत’ भी रखें। इसकेो बाद अनंत भगवान की वंदना करके और भगवान विष्णु का आह्वान करते हुए गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें।

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इसके बाद अनंत भगवान का ध्यान करते हुए अनंत को अपनी दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही यह ध्यान रहे कि इस दिन पुराने वाले अनंत को हटा देना चाहिए औहर भगवान अनंत की कथा और फिर सत्यनारायण की कथी सुननी चाहिए, क्योंकि अनंत ही भगवान विष्णु का एक रूप है। बाद में इस व्रत का पारण किसी ब्राहम्ण को 14 चीजों का दान देकर करना चाहिए।