बिहार में ऐसे कई दार्शनिक स्थान है, जो दुनिया भर में अपने इतिहास और प्राकृतिक सौन्दर्यता के लिए मशहूर है। आज हम आपको बिहार के बांका जिले के ब्रह्मपुर पंचायत में बौंसी नामक एक गांव है, अरबों साल पहले पुराणों में वर्णित मंदार पर्वतमाला के बारे में बता रहे हैं।
700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं। पौराणिक कहानियों के अनुसार, मंदार का मतलब ही स्वर्ग होता है। ऐसी मान्यता है कि मंदार पृथ्वी का स्वर्ग है और सृष्टि के आदिकाल से ही मौन दृढ़वत खड़ा है। उसी मंदार पर कैलाश सहित सप्तपुड़िया थी। उस समय मंदार वर्फीली ऊंची चट्टानों से आच्छादित था। इसी को मध्य मेरु कहा गया, जो बाद में सुमेरु बना। वह हिमालय के मध्य अवस्थित था और यह हिमालय राजमहल के पूर्वी पहाड़ से लेकर पश्चिम संवेद शिखर तक मूल भाग रहा है, जो अरबों वर्ष पुरानी कहानी को आज भी याद दिलाता है।
एक कहानी ऐसी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे। वहीं एक कथा यह भी प्रचलित है कि भगवान विष्णु ने मधुकैटभ राक्षस को पराजित कर उसका वध किया और उसे यह कहकर विशाल मंदार के नीचे दबा दिया कि वह पुनः विश्व को आतंकित न करे। पुराणों के अनुसार यह लड़ाई लगभग दस हजार साल तक चली थी।
मंदार पर्वत पर स्थित है पापहरणी तालाब
मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब स्थित है। प्रचलित कहानियों के मुताबिक कर्नाटक के एक कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान किया था, जिसके बाद से उनका स्वास्थ ठीक हुआ। तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है। इसके पूर्व पापहरणी ‘मनोहर कुंड’ कुंड के नाम से जाना जाता था।
पर्वत पर अंकित हैं लकीरें
ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन में नाग को रस्सी की तरह प्रयोग किया गया था, जिसका साक्ष्य पहाड़ पर अंकित लकीरों से होता है। पर्वत पर एक समुद्र मंथन को दर्शाता हुआ स्मारक भी बनाया गया है।
अंगजनपद के सुप्रसिद्ध शोध लेखक परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी ने अपने पुस्तकों में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि वेदों की निर्माणस्थली मंदार ही है। मंदार के शोध लेखक मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि पुराण साबित करता है कि मंदार से 12 बार समुंद्र मंथन किया गया है। योग वशिष्ठ में इसका स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक कल्प में समुंद्र मंथन हुआ है और इसी मंदराचल पर्वत से 12 बार समुद्र का मंथन किया जा चुका है।
यह सर्वविदित है कि एक कल्प में 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्ष होते हैं। इस तरह 12 कल्प में 48 अरब वर्ष से अधिक मंदार की उम्र ठहरती है। माना जाता है कि सभी पर्वतों से प्राचीणतम पर्वत मंदार ही है। ऐसी मान्यता है कि शिव और पार्वती के विवाह से पूर्व हिमालचल की सभा में बुलायी गयी सभी पर्वतों के मध्य मंदार को ही सभापति बनाया गया था, क्योंकि उस वक्त शिव की स्थली मंदार थी। महाभारत सहित अनेक पुराणों में कहा गया है कि मंदार के एक भाग का नाम कैलाश है, जो आज का कैलाश घाटी जिलेबिया मोड़ पहाड़ तथा हनुमना डैम बीच है के।
वहीं, पांडवों की के यात्रा वक्त लोमस ऋषि ने मंदराचल पर्वत का जिक्र किया था, जिसमें बताया गया था कि यहां पर मणिभद्र नामक यक्ष और यक्षराज कुबेर रहते हैं। इस पर्वत पर 88 हजार गंधर्व और किन्नर तथा उनके चौगुने यक्ष अनेकों प्रकार के शस्त्रधारण कि ये यक्ष राजमणि भद्र की सेवा में उपस्थित रहते हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि सृष्टि के आदिकाल का कैलाश हिमालय मेरु, सुमेरु एवं मंदार बौंसी ही है। मंदार में ही व्यास गुफा में वेदों को लिपीवद्ध किये गये थे। वेदों की उत्पत्ति ही इसी मंदराचल पर्वत पर हुई थी।
आदिकाल से लेकर महाभारत काल तक के व्यास द्वारा समय-समय पर मंदार की गुफा में ही वेदों को लिखा गया था। इसके कई साक्ष्य मंदार में व्यास गुफा, सुकदेव गुफा, गणेश गुफा आदि अभी भी मौजूद हैं। साथ ही वेदों के जितने ऋषि देवी देवता हैं, उन सभी का वासस्थान मंदार की उपत्यकाओं में देखने को मिलता है। इतना ही नहीं गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का प्रादुर्भाव भी यहीं से आदिकाल में हुआ है, जिसके कई साक्ष्य शोध लेखकों के पास आज भी मौजूद हैं।
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